Saturday, May 10, 2014

अनकही पक्तियाँ: विभा-“विभास”-विभा !!!

अनकही पक्तियाँ: विभा-“विभास”-विभा !!!: विभा-“विभास”-विभा  !!! (Dedicated to my mother)                                                                      :-विभास कुमार वत...

विभा-“विभास”-विभा !!!




विभा-“विभास”-विभा  !!!
(Dedicated to my mother)
                                                                     :-विभास कुमार वत्स (17-feb-13)

माँ तुम कहाँ हो?
कहाँ हो तुम?

न तुम मेरे साथ हो,
ना ही मुझसे जुदा,
न तुम मेरे करीब हो ,
ना ही मुझसे दूर ,
वर्षों से तेरा एक एहसास है,
जो हर वक्त मेरे साथ है |

जब से आंखें खोला हूँ,
खुद को तुमसे दूर पाया हूँ|
जब से होश संभाला हूँ,
तेरी यादों से ही खुद को फुसलाया हूँ|
जब से यादें संजोया हूँ,
तुझको भी उन्ही यादों में तडपता पाया हूँ|

तेरी प्यार के पुचकार के बदले,
खटखटाती बेतों से डर के जागा हूँ|
तेरी मखमली गोद के बदले,
चुभते तख्तों पर सोया हूँ|
तेरी ममता की छाव के बदले,
उसनती कर्कटों के नीचे पला हूँ|
हर डर, हर दुःख ,हर गम मे सदा,
तेरी परछाई से लिपट-लिपट के रोया हूँ|

मैंने भी खुल के आंसू बरसाये हैं,
तु भी तड़प-तड़प के नयनों को भिंगोयी है|
न मैंने तुझे कभी कुछ बोला है,
ना ही तुने मुझे कभी एहसास होने दिया है|
मगर हम दोनों के दिल को पता है,
दर्द हर जुदाई के कितना गहरा है|

छोड़ कर अपना बचपन उन अंधियारी-उसनी गलियों मे,
मैंने कड़वे सच को है अपनाया |
कटनी है जिंदगी तेरे बिना ,
तेरी मखमली साये से दूर,
तेरी यादों की परछायिओं के साथ,
तेरी एहसास के धुँधली तस्वीरों के साथ,
यही खुद को मैंने हैं समझाया|

निरंतर अग्रसर इस जीवन मे,
जब भी कठिनाईओं से टकराया हूँ,
तेरी पुकार फिसलते ही इस जुबाँ से,
एक अजीब सा सुख पाया हूँ|
तेरी ही परछायिओं के साये मे रह के,
हर मुश्किल से खुल के टकराया हूँ|

घायल हो के इन ठोंकडों से ,
जब –जब टूट के बिखड़ा हूँ,
 तेरे दिये जिंदगी के सबब से,
बिखरे विभास को रग-रग जोड़ा हूँ|
फिर उठ खड़ा हो तेरे दिये साहस पे ,
सारी मुश्किलों को दूर खदेड़ा हूँ|

मीलों दूर रह कर भी मुझसे,
मेरी आकाँक्षाओं को तुमने पला है,
पलकों तले संजो कर मुझको,
मेरे सपनों मे प्राण भर डाला है |
मुझे दुनियाँ कि बुरी नजरों से बचाने मे ,
अपना जीवन बच्चों को अर्पण कर डाला है ||